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क्या नासा को टक्कर दे रहा है इसरो, इन वजहों से है सबसे आगे NASA vs ISRO

क्या नासा को टक्कर दे रहा है इसरो, इन वजहों से है सबसे आगे NASA vs ISRO

बड़ा नाम दिमाग में नासा का आता है, जो अमेरिका की स्पेस एजेंसी है। इसरो के सभी सफल स्पेस मिशन्स के बाद यह चर्चा भी जोर पकड़ती है कि क्या इसरो नासा को टक्कर दे रहा है, या फिर कम बजट और संसाधनों के बावजूद अंतरिक्ष में सफलता पाने वाला इसरो नासा से बेहतर है। नासा और इसरो के अलावा भी रूस और चीन जैसे देशों की स्पेस एजेंसियां अंतरिक्ष विज्ञान में नए-नए प्रयोग कर रही हैं, लेकिन नासा का नाम सबसे ऊपर है।

शुरुआत इसरो और नासा दोनों के परिचय से करते हैं, जिससे इनका उद्देश्य भी स्पष्ट हो जाता है। ISRO या 'इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन' के नाम से ही स्पष्ट है कि इसरो का मकसद अंतरिक्ष में रिसर्च या अनुसंधान करना है। अंतरिक्ष में इसरो की ओर से भेजे गए सैटलाइट्स हों या मिशन हों, इनका मकसद बाकी स्पेस एजेंसियों (जिनमें नासा भी शामिल है) के साथ मिलकर रिसर्च करना और अंतरिक्ष को समझना है। इसरो के नाम से साफ है कि यह 'अनुसंधान संस्थान' है। वहीं, NASA यानी कि 'नैशनल ऐरोनॉटिक्स ऐंड स्पेस ऐडमिनिस्ट्रेशन' यूनाइटेड स्टेट्स की एजेंसी है, जिसका काम अंतरिक्ष से जुड़े रिसर्च के अलावा सिविलियन स्पेस प्रोग्राम्स और अंतरिक्ष में होने वाली गतिविधियों की निगरानी भी है।

नियंत्रक भी है नासा
नासा के नाम को हिंदी में समझें तो अंतरिक्ष प्रबंधन या स्पेस मैनेजमेंट के लिए भी यह जिम्मेदार है। इस तरह नासा बाकी एजेंसियों को भी उनके अंतरिक्ष से जुड़े प्रोग्राम्स के लिए एक आधार देता है। नासा रिसर्च के अलावा अंतरिक्ष में इंसानों को भेजने के प्रोग्राम्स पर तो काम कर ही रहा है, इसकी जिम्मेदारी एक नियंत्रक की भी है। इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को भी नासा सपॉर्ट कर रहा है। वहीं, इसरो बाकी एजेंसियों की तरह प्रतिस्पर्धा में विश्वास नहीं करता। इसरो महत्वाकांक्षी मिशन्स को लेकर जरूर चल रहा है लेकिन इसका मकसद किसी के आगे निकलने की होड़ नहीं है। यही वजह है कि इसरो को दूसरे देशों और एजेंसियों की गलतियों से सीखने का मौका मिलता है और मिशन के लिए भारतीय एजेंसी खुद को तैयार कर लेती है।

होड़ में शामिल नहीं
इसरो अपने उद्देश्य को लेकर कितना स्पष्ट है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक वक्त जहां अमेरिका और रूस के बीच अंतरिक्ष में जाने को लेकर होड़ देखने को मिली थी और अब सबसे शक्तिशाली रॉकेट बनाने की होड़ अमेरिका और चीन के बीच देखने को मिल रही है, इसरो को इससे फर्क नहीं पड़ता। इसरो की रॉकेट लॉन्चर रेंज (SLV, ASLV, PSLV और GSLV) के नाम के साथ SLV अब भी जुड़ा है, यानी कि वे 'सैटलाइट लॉन्च वीइकल्स' हैं। इनका पहला लेटर अलग-अलग ऑर्बिट्स को दर्शाता है। उदाहरण के लिए PSLV पोलर सिंक्रनस ऑर्बिट और GSLV जियो सिंक्रनस ऑर्बिट तक जाने वाले वीइकल्स हैं। इसरो अपने रॉकेट्स को वीइकल्स मानता है और मिशन रॉकेट बनाने की होड़ में शामिल नहीं है।

क्यों खास है इसरो?

इसरो के पास नासा या बाकी एजेंसियों की तरह ढेर सारे संसाधन और बहुत बड़ा बजट नहीं है लेकिन सीमित बजट में ही प्रतिभाशाली वैज्ञानिक अपने लक्ष्य को सफलतापूर्वक हासिल कर रहे हैं। कम बजट में भी बेहतरीन परिणाम इसरो के वैज्ञानिक देते रहे हैं और इस वजह से इसरो पूरी दुनिया के लिए उदाहरण बन गया है। नासा या बाकी एजेंसियों से तुलना करें तो अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा का सालाना बजट 18 बिलियन डॉलर (करीब 1,290 अरब रुपये), यूरोपियन स्पेस एजेंसी (EESA) का सालाना बजट 7 बिलियन डॉलर (करीब 501 अरब रुपये), रूस और चीन की स्पेस एजेंसियों का बजट 3 बिलियन डॉलर (करीब 215 अरब रुपये) है, वहीं इसरो का सालाना बजट केवल 1.7 बिलियन डॉलर (करीब 121 अरब रुपये) है। यह बजट नासा के सालाना बजट के 10 प्रतिशत से भी कम है।


इसरो की उपलब्धियां

कम बजट और महत्वाकांक्षा वाले प्रोग्राम्स के बावजूद इसरो दुनिया के सामने मील का पत्थर साबित हुआ है और असाधारण सफलाएं हासिल की हैं। चंद्रयान मिशन के अलावा PSLV-C37 और मंगलयान इसरो के दो सबसे सफल लॉन्च रहे हैं। 2017 में किए गए PSLV-C37 लॉन्च में एकसाथ 104 सैटलाइट स्पेस भेजे गए थे और आज भी सिंगल रॉकेट के साथ सबसे ज्यादा सैटलाइट्स भेजना का रेकॉर्ड इसके नाम दर्ज है। वहीं, इससे पहले 2013 में मंगलयान मिशन में भारत सफलतापूर्वक मंगल की कक्षा में पहुंचने वाला चौथा देश बना और चीन से भी पहले यह उपलब्धि हासिल की। इन दोनों ही लॉन्च पर बहुत कम खर्च आया है, जो इसको को किसी भी दूसरी एजेंसी से बहुत आगे खड़ा करता है।
क्या नासा को टक्कर दे रहा है इसरो, इन वजहों से है सबसे आगे NASA vs ISRO क्या नासा को टक्कर दे रहा है इसरो, इन वजहों से है सबसे आगे NASA vs ISRO Reviewed by devkant marskole on September 06, 2019 Rating: 5

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